तुम भी हो   दीवाने कितने।

लिख डाले अफसाने कितने।।

महफ़िल में तो परदा रखते

घायल हैं परवाने कितने।।

दिल की बात समझते कैसे

हम भी थे अनजाने कितने।।

तुमसे ही आबाद हुए हैं

वरना थे वीराने कितने।।

तेरी आँखों के जादू से

बन्द हुए मैख़ाने कितने।।

शेख नये हैं उनसे पहले

आये थे समझाने कितने।।

इक दिल ना देने की ज़िद में

तुमने किये बहाने कितने।।

तुम में कितना अपनापन था

तुम हो अब बेगाने कितने।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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