उसने अवसर दे मारा।

हमने भी सर दे मारा।।

दोस्त हमारे पीछे थे

किसने खंज़र दे मारा।।

फूल दिए थे कल उसको

जिसने पत्थर दे मारा।।

कैसे कह दें दुश्मन है

जिसने दिल पर दे मारा।।

बदनामी ने शोहरत को

मेरे मुंह पर दे मारा।।

इक कबीर ने नफ़रत पर

ढाई अक्षर दे मारा।।

प्रश्न उसी को घेरेंगे

जिसने उत्तर दे मारा।। 

लानत है दरवेशी पर

मौत ने जब घर दे मारा।।

सुरेश साहनी,कानपुर

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