अजीब बात है
मैं दायरे से बाहर क्यों नहीं आता
जबकि आज वक़्त है चुप नहीं बैठने का
जब उलझन बढ़ती है
मैं कमरे से बाहर आ जाता हूँ
टहलता हूँ घर से ठीक बाहर
सड़क पर इधर से उधर
और फिर कमरे में लौट आता हूँ
कमरे में प्रकाश है बिजली रहने तक
सोशल मीडिया है नेट पैक रहने तक
और भी बहुत कुछ है
जैसे कुछ किताबें और दवाएं भी
और एक बाउंडेड फेसबुक एकाउंट भी
जिसमें मैं नहीं पोस्ट करता वह सब
सब यानी ऐसा कुछ भी नहीं
जिससे मेरा एकाउंट ब्लॉक हो जाय
या मेरी ट्रोलिंग बढ़ जाये
और मालूम है
मैं अभ्यस्त हो रहा हूँ
सरकार को सहन करने का
अब मैं पढ़ता हूँ
आर्थिक मंदी देश के विकास में सहायक है
असमान आर्थिक विकास से रोजगार बढ़ते हैं
आखिर क्रांति ऐसे ही होगी ना?
सुरेश साहनी ,कानपुर
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