क्यों मुझको बदनाम कराना चाहे हो।

नाहक़ इक इल्ज़ाम लगाना चाहे हो।।


तुम तो दीवाने हो कोई बात नहीं

मुझको भी करना दीवाना चाहे हो।।


साहिल पर तन्हा तन्हा खुश तो हैं

क्या मेरी भी नाव डुबाना चाहे हो।।


तुमको तो रुसवाई का कुछ खौफ नहीं

शाम सुबह बस छत पर लाना चाहे हो।।


यार मुहब्बत ज़ुर्म अज़ल से है तो है

काहे दुनिया से टकराना चाहे हो।।


जिसमें ग़म हों आँसू हों तक़लीफें हों

आख़िर क्यों ऐसा अफ़साना चाहे हो।।


मान ही लेते हैं जब ज़िद पर आए हो

चलो कहाँ मुझको ले जाना चाहे हो।।


सुरेश साहनी,अदीब

कानपुर

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