इक नई बात क्यों नहीं होगी।
फिर शुरुवात क्यों नहीं होगी।।
हमने माना वो रूठ बैठे हैं
पर मुलाक़ात क्यों नहीं होगी।।
चाँद डूबा था अपनी किस्मत का
फिर हँसी रात क्यों नहीं होगी।।
दिल में कुछ कुछ घुमड़ रहा है फिर
आज बरसात क्यों नहीं होगी।।
इक नई बात क्यों नहीं होगी।
फिर शुरुवात क्यों नहीं होगी।।
हमने माना वो रूठ बैठे हैं
पर मुलाक़ात क्यों नहीं होगी।।
चाँद डूबा था अपनी किस्मत का
फिर हँसी रात क्यों नहीं होगी।।
दिल में कुछ कुछ घुमड़ रहा है फिर
आज बरसात क्यों नहीं होगी।।
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