तुमको पाने की कोशिश में

 क्या क्या खोया मैंने।

क्या रख पाया, क्या क्या छूटा 

क्या सँजोया मैंने।।

बाल सुलभता और सहजता ,

खोकर पाया यौवन

हम उम्रों से प्रतिस्पर्धाये,

 अन्तस् में अवगुंठन

कुंठाओं को कोमल मन पर

 कितना ढोया मैंने।।

अपयशता ने सीमाओं से 

बाहर पर फैलाये

तुमसे भी बेरुखी मिली 

अपने भी हुए पराये

बिखरे मनके मन के 

कितनी बार पिरोया मैंने।।

एक ख़ुशी पाने की खातिर,

 कितने दुःख ले बैठे

क्या क्या चाहा था जीवन में 

हम क्या कुछ ले बैठे

मिली कंटकों की डग,

 था फूलों को बोया मैंने।।

कुछ अपने भी छूटे

तुमको पाने की कोशिश में

कुछ सपने भी टूटे

इक सच करने की कोशिश में

वक्त मिले तो सोचूं क्या

 खोया क्या पाया मैंने।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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