आप दिल के करीब कब आये ।

यूँ तो ग़ैरो-रकीब सब आये।।

ज़ीस्त क्यों कर बुझी बुझी बीते

आ भी जाओ कि कुछ तरब आये।।

है ये दस्तूर भी ज़रूरत भी

क्या पता कल न ये तलब आये।।

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