सूखते रिश्तों को पानी दे गया।

ख़्वाब जब वो आसमानी दे गया।।


वक़्त के सहरा में डूबे दर्द को

कौन दरिया की रवानी दे गया।।


हुस्न आशिक़ को कहाँ देता है कुछ

इश्क़ दुनिया को जवानी दे गया।।


क्या पता था छोड़ कर जायेगा फिर

क्या इसी ख़ातिर निशानी दे गया।।


हमसे खुशियों का मुहल्ला छीनकर

दर्दोगम की राजधानी दे गया।।


त्रासदी है हर कहानी सोचकर

वो अधूरी सी कहानी दे गया।।


 कौन सी उम्मीद पर इस उम्र में

आशिकी को खाद पानी दे गया।।


और क्या देता वो दीवाना मेरा

ज़िन्दगी को ज़िंदगानी दे गया।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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