मुक्तक

 भाव गंगा के प्रदूषक बन नहीं सकते।

सहज कवि हैं हम विदूषक बन नहीं सकते।

नाग हैं हम नीलकंठी सत्य उगलेंगे

अन्न के हम चोर मूषक बन नहीं सकते।।

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