इश्क़ पर से अब यक़ी जाता रहा।
हुस्न रह रह कर के भरमाता रहा।।
मन को बच्चे सा हुलसता देखकर
वक़्त रह रह कर के दुलराता रहा।।
एक था मजबूत दिल इस जिस्म में
जाने कैसे डर से घबराता रहा।।
वो भी झूठे ख़्वाब दिखलाते रहे
मैं भी अपने दिल को समझाता रहा।।
हद तो है उसकी ख़ुशी के वास्ते
अपने दिल के दर्द झुठलाता रहा।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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