काश ऐसा समाज हो जाये।
हर कोई दिलनवाज हो जाये।।
ग़म भी हँस के करे कुबूल तो फिर
आदमी खुशमिजाज हो जाये।।
सर उठाये कहीं कोई रावण
उसके मुखलिफ़ समाज हो जाये।।
ये न् हो उसके इश्क़ में पड़कर
जीस्त अपनी मिराज हो जाये
हुस्न महमूद हो न हो लेकिन
इश्क़ उनका अयाज़ हो जाये।।
ये अना छूटती नहीं वरना
आदमी इम्तियाज हो जाये।।
आदमी आदमी से प्यार करे
हर कहीं रामराज हो जाये।।
सुरेश साहनी कानपुर
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