बयाँ करते तो किस्सा और होता।

यक़ीनन कुछ तमाशा और होता।।

ज़माने भर ने बांटा दर्द मेरा

मगर उनका दिलासा और होता।।

कयामत ढा रहे हैं वो अकेले

गजब होता जो उन सा और होता।।

हम आधे मन से उठ आये अगरचे

मनाते वो ज़रा सा और होता।।

चलो रिश्तों में कुछ तल्ख़ी तो आई

बिलाहक कुछ कुहासा और होता।।

तेरा शीशा मेरी ग़ैरत से कम है

नहीं तो मैं भी प्यासा  और होता।।

ज़नाज़े में मेरे बस वो नहीं हैं

नहीं तो ढोल ताशा और होता।।

तुम आते तो मेरी तुर्बत पे बेशक़

ख़ुशी में एक जलसा और होता।।

सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है