पाँव नहीं हैं पर की बातें करते हों।
काहे बहकी बहकी बातें करते हो।।
क्यों कर तुमसे दुनिया वाले रूठे हैं
चुप रहकर तुम किसकी बातें करते हो।।
कौन यहाँ अब किसकी पीड़ा सुनता है
किससे दुनिया भर की बातें करते हो।।
तुमको जब देखा है तन्हा पाया है
किससे चार पहर की बातें करते हो।।
सुनने वाले सुनकर पीछे हँसते हैं
नाहक़ बाहर घर की बातें करते हो।।
मातें खायीं हैं उसका भी ज़िक्र करो
फर्जी सबकी शह की बातें करते हो।।
सुरेश साहनी, कानपुर।
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