सांवरे जो तेरी बांसुरी बंद है।

इसलिए आज दुनिया में छलछंद है।।

श्याम जब से तेरी बाँसुरी बंद है।

ये धरा त्रस्त है कंस निर्द्वन्द है।।......


लाल कालीन चुभती रही पांव में

भाग कर आ गए प्यार के गांव में  

धूप में हमको  चलना ही बेहतर लगा 

जबकि जलते रहे कोट की  छांव में 


दुख हरो नाथ फिर मा शुचः बोलकर

 तेरे चरणों मे केशव कहाँ द्वंद है।।....


सांवरे क्यों तेरी बाँसुरी बंद है।।....


रास्ता अब कोई सूझता ही नहीं

गोपियों को कोई पूछता ही नहीं

हर तरफ़ है घृणा हर तरफ द्वेष है

प्रेम के आसरों का पता  ही नहीं


आज स्वछंद हैं आसुरी वृत्तियां 

हर तरफ है तमस हर तरफ धुन्ध है।।.....


श्याम जब से तेरी बांसुरी बन्द है।।......


रूप की चाह में मन अटकता रहा

काम की कन्दरा में भटकता  रहा

देह अनुरिक्तियों में विचरती रही

एक असंतोष मन मे खटकता रहा


आज मालुम हुआ क्या है आनंद सत 

जो है सद्चित्त वो ही सदानंद है  ।।.....


श्याम जब से तेरी बांसुरी बन्द है।।.....


सुरेश साहनी, कानपुर

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