कब कहा मुझको उज़्र सब से है।

है शिक़ायत कोई तो रब से है।।


खुशियां नफ़रत में ढूंढ़ने वाला

आज महरूम हर तरब से है।।


कुछ अदब कोई एहतराम नहीं

खाक़ रिश्ता तेरा अदब से है।।


 मैं अज़ल से मुरीद हूँ उसका

क्या कहूँ इश्क़ है तो कब से है।।


आदमी आदमी न हो पाया

वो ख़ुदा भी ख़ुदा है जब से हैI।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है