दौर इक कामयाब ले आते।
तुम अगर इन्कलाब ले आते।।
हम से नाहक सवाल पूछे हो
वक़्त से हर जवाब ले आते।।
हमकदम खार ही रहे हरदम
काश ये फ़न गुलाब ले आते।।
काश नींदें न गुम हुई होतीं
हम मुकम्मल से ख़्वाब ले आते।।
साथ आये हैं वो रक़ीबों के
कुछ तो आंखों में आब ले आते।।
लाख तुर्बत पे बिजलियां गिरती
तुम उन्हें बेनक़ाब ले आते।।
तीरगी साथ देगी महशर तक
किसलिए आफ़ताब ले आते।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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