नगरी में साहित्य के गुट हो गए अनेक।

क्यों न रचनाधर्मिता देती घुटने टेक।।


भेदभाव पूरित मिला गुरुओं का व्यवहार।

नव अंकुर कुंठित हुए नई कलम लाचार।।

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