ये पट्टीदार चेहरे पर सगे हैं।
पराये हो गए हैं पर सगे हैं।।
भले कल घाव पर मरहम थे लेकिन
अभी चुभते हुए नश्तर सगे हैं।।
नहीं है एक घर अपना कहे जो
मगर कहने को सारे घर सगे हैं।।
बरम बाबा की डेहरी पर आकर
लगे हैं अब भी वे पत्थर सगे हैं।।
सगे आदर न् दें फिर भी चलेगा
कि हम देंगे उन्हें आदर सगे हैं।।
हमारा गाँव मजरा सब सगा है
शिवाले डीह दैरो-दर सगे हैं।।
सगों से बढ़के दूजे प्यार देंगे
जो बोलो प्यार से कहकर सगे हैं।।
सुरेश साहनी कानपुर
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