डालना है अभी पड़ाव कहाँ।

घर कहाँ है हमारा गांव कहाँ।।


गर वो दुश्मन है तो सम्हल के रहो

क्या पता कौन देदे दांव कहाँ।।


हम तुम्हे दिल क्या जान भी देदें

तुम ही देते हो हमको भाव कहाँ।।


मैं तुम्हारी वफ़ा का आशिक हूँ

अब गलत है मेरा चुनाव कहाँ।।


तुम मुझे भूल जाओ हर्ज नहीं

मैं तुम्हे भूलकर के जाऊँ कहाँ।।


एक दूजे में हम समाहित है

हममें तुममें कोई दुराव कहाँ।।


ज़ेरो-बम ज़िन्दगी के हिस्से हैं

एक जैसा रहा बहाव कहाँ।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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