करता है मजदूर बिचारा.....

मरता है मजदूर बिचारा.....

स्थितियां मानक से हटकर

संरक्षा मानक से कमतर

वेतन महंगाई से कम हैं

सुविधाएं घटतर  से घटतर

सहता है मजदूर बिचारा .....

वह श्रम की खातिर लड़ता है

वेतन की खातिर लड़ता है

क्या मिलता है बस मुट्ठी भर

वेतन अफसर का बढ़ता है

लड़ता है मजदूर बिचारा.....

ओवर टाइम बन्द हो गया

ठेका प्रॉफिट बन्द हो गया

बन्द हो गए बोनस कितने

जाने क्या क्या बन्द हो गया

रोता है मजदूर बिचारा.....

निर्माणी बिकने ना पाए

कल शायद अच्छे दिन आएं

रोज़गार तो खत्म हो गए

बच्चे शायद कुछ बन जाएं

कहता है मजदूर बिचारा......

सुरेश साहनी कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है