कल तक बेचे झूठे सपने।

ख़ुद पर बीती लगे तड़पने।।


और तमाशाई भी कैसे

ग़ैरों से ज्यादा कुछ अपने।।


कैसे वे फरियाद सुनेंगे

मुंसिफ जी निकले कनढपने।।


ज्यूँ खुलता है भेद लुटेरे

राम नाम लगते हैं जपने।।


ज़िक्र जफ़ा का यूँ ही आया

लेकिन आप लगे क्यों तपने।।


सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है