आशिक़ी काम कर गयी आख़िर।
अपनी किस्मत सँवर गयी आख़िर।।
प्यास लौटी हज़ार चश्मों से
आरिजों पर ठहर गयी आख़िर।।
जिसमें यादें थी मेरे बचपन की
वो हवेली किधर गयी आख़िर।।
उम्र के इस पड़ाव पर आकर
अपनी आदत सुधर गयी आख़िर।।
मौत से जंग जंग होती है
ज़िंदगानी मुकर गई आख़िर।।
ज़ीस्त तन्हा शहर में क्या कटती
हार कर अपने घर गयी आख़िर।।
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