लिखने के एवज में

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मैं लगभग हर रोज चोरी करता हूँ।नहीं चोरी कहना ठीक नहीं होगा।मैं अपने आराम के समय,नींद के समय और बच्चों को देने वाले समय से समय चुराता नहीं छीनता हूँ।यह चोरी से ऊपर का लेवल है। लेकिन आज का यह लेख चोरी या डकैती से सम्बंधित नहीं है।मामला लिखने या न लिखने का भी नहीं है।हाँ यह सार्थक और निरर्थक लेखन का विषय जरूर है। इस लिखने के बीच में बच्चा साँप सीढ़ी खेलने के लिए कहता है।श्रीमती जी अपनी मम्मी के घर चलने को कह रही हैं।बिटिया कुछ किताबें खरीदने की बात कह रही है। बड़े भाई संगीत की बैठक में बुला रहे थे।एक मित्र ईद मिलन के लिए कुछ मित्रों के घर चलने को कह रहे हैं। पड़ोस में सत्संग का कार्यक्रम भी है।अर्थात लिखने की साधना इतने यंत्रणाओं से गुज़र कर भी पूरी नहीं हो पाती। चार से पांच घण्टों में इतना ही लिख पाया हूँ ,जितना आप पढ़ रहे हैं।

 और लिख देना ही पर्याप्त नहीं है।लिख देने के बाद पोस्ट करते ही आप पर आक्रमण होने शुरू हो जाते हैं।एक बार आपके चाहने वाले लाइक कमेन्ट करें या न करें,विरोध करने वाले तलवार ज़रूर भाँज जाते हैं। आप लिखिए अनूप शुक्ल बहुत अच्छे लेखक हैं।शुक्ला जी पढ़ें चाहे ना पढ़ें कुछ लोग यह सवाल ज़रूर पूछ लेंगे कि `क्यों भाई!क्या हम अच्छे नहीं हैं।" फैज़ साहब ने कहा भी है,

 वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था

 उन्हें वो बात बड़ी नागवार गुज़री है ।।

 एक दिन मेरी एक कविता जिसे ढेर सारे लाइक कमेन्ट मिले थे।उसी पर एक कमेन्ट ऐसा था जिसे पढ़कर मुझे खुश होने का कोई कारण नहीं दिख रहा था। किसी ने लिखा था , साला चूतिया खाली कविते लिखता रहता है।अपना समाज पिछड़ल जाता ओकरे खातिर काहें नाही लिखता है" आप बताइए क्या जबाब दिया जा सकता है। खैर अभी तो लोग गुलामी की आज़ादी में मगन हैं।

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