ग़ज़ल कैसे कहें नाज़िल न् हो तो।
लगाए दिल कहाँ जब दिल न् हो तो।।
मेरे जलने का मतलब ही नहीं है
अगर वो आपकी महफ़िल न् हो तो।।
दिले नादान क्यों नादान समझे
निगाहे नाज़ से बिस्मिल न् हो तो।।
तो रुसवाई को ही हासिल समझना
मुहब्बत में अगर हासिल न् हो तो।।
मुसलसल मुब्तिला हैं हम सफर में
मगर जाएं कहाँ मंज़िल न् हो तो।। साहनी
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