ज़िन्दगी  ज़िन्दगी के बिन जीते ।

मौत तुझको भी चार दिन जीते।।


वो तो आसान हो गयी वरना

मौत होती भले कठिन जीते।।


जीस्त मुझसे सवाल करती है

मौत के साथ कितने छिन जीते।।


मौत ने कर्ज तो नहीं लादा

जीस्त होती जो मोहसिन जीते।


जिंदगानी ने कर्ज़ लाद दिए

वक़्त करता नही उरिन जीते।।


एक चादर मिली थी झीनी सी

ये जो होती नहीं गझिन जीते।।


इश्क़ चाहे है रोज हार मिले

हुस्न बेशक़ ही दिन ब दिन जीते।।


सुरेश साहनी कानपुर

06/09/22

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