कोशिशन उसको भूलाता ही रहा।

पर वो फिर फिर याद आता ही रहा।।


कितने बुत थे उस हरम में क्या कहें

मुझसे वो सब कुछ छुपाता ही रहा।।


चारागर था वो  नए अंदाज का

दर्द को मरहम बताता ही रहा।।


मरने वाले में कोई खूबी न थी

सब की खातिर बस कमाता ही रहा।।


दाँव पर मुझको लगाकर उम्रभर

बेवफा चौसर बिछाता ही रहा।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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