यह युग आपाधापी का है

सारे  कितनी  जल्दी में हैं।।


जन्मने और मर जाने में

जी भर कर भी जी पाने में

अपनों की खातिर वक्त नहीं

कुछ जाने कुछ अनजाने में


अपनी ख़ातिर भी वक्त नहीं

सारे कितनी जल्दी में हैं।।....

यह युग आपाधापी का है....


रिश्तों में गज भर की दूरी

मिलने की मीलों मजबूरी

बन गए अगर तो निभने की

होती है बस खानापूरी


अपने बेगाने सब के सब

जाने कैसी जल्दी में हैं।।....

यह युग आपाधापी का है......


झुक कर प्रणाम से नमस्कार

युग बदला बदले संस्कार

अब हलो नमस्ते दूर बात

बस हाय हाय का है प्रचार


संबंधों को श्मशान तलक

ले जाने की जल्दी में हैं।।.....

यह युग आपाधापी का है.....


सुरेशसाहनी,कानपुर

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