वक्त हर घाव को भर देता है।

चाक दामन रफू कर देता है।।

ज़ुल्म की हस्ती मिटा दे ऐसा

सबकी आहों में असर देता है।।

खत्म होती हुयी उम्मीदों को

वो नयी राहगुज़र देता है।।

दिन ढले रात वही करता है

रात से वो ही  सहर देता है।।

अहले दुनिया की भलाई होगी

वो सज़ाएं भी अगर देता है ।।

ठौर देता है चरिंदों के लिए

तो परिंदों को शजर देता है।।

सब का मालिक है ख़ुदा बन्द करीम

सब को जीने के हुनर देता है।।

सुरेश साहनी, कानपुर

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है