इस कड़ी सी धूप में इक शामियाना चाहिये।
हाँ तुम्हारे साथ बस इक पल सुहाना चाहिए।।
चार दिन की ज़िंदगी है एक लंबा सा सफ़र
साथ कोई हमसफ़र जाना अज़ाना चाहिये।।
अपने पहलू में बिठा कर गेसुओं की छाँव दो
उम्र भर किसने कहा दिल मे ठिकाना चाहिए।।
और फिर शहरे-ख़मोशा तक चलें किसने कहा
उठ के उनको दो कदम तो साथ आना चाहिये।।
आपके इनकार की कोई वजह शक या शुबह
किसलिये हैं दूरियाँ कुछ तो बताना चाहिए।।
लोग देखे हैं, कोई आ जायेगा ,जल्दी में हैं
हमसे बचने के लिये कुछ तो बहाना चाहिए।।
नाज या नखरे,दिखाना हुस्न का हक़ है मगर
इश्क़ जब मरने पे आये मान जाना चाहिए।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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