खूबसूरत है बेहिसाब कोई।
उसका दिखता नहीं जवाब कोई।।
आफताबी जलाल है उसका
और रूख़ है कि माहताब कोई।।
होठ उसके हैं कोई पैमाने
उसकी आंखें हैं या शराब कोई।।
रात ख्वाबों में वस्ल का होना
कर गया है मुझे ख़राब कोई।।
जो भी दिखता है वो नहीं होता
ज़ीस्त है या कि है सराब कोई।।
इश्क़ मेरा महक गया बेशक़
हुस्न जैसे खिला गुलाब कोई।।
हो सके बेनकाब मत आना
कैसे लाएगा इतना ताब कोई।।
सुरेश साहनी, कानपुर
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