अभी बाज़ार में आया हुआ हूँ।
मगर बिकने से घबराया हुआ हूँ।।
मुझे बाज़ार के लहजे पता हैं
बराये-रस्म शरमाया हुआ हूँ।।
कभी आता था मैं भी बन के ताज़िर
अभी बिकने को ही आया हुआ हूँ।।
ज़माने से शिकायत किसलिए हो
अभी मैं ख़ुद पे झुंझलाया हुआ हूँ।।
कम-अज़-कम बदनज़र से अब न देखो
कि अंतिम बार नहलाया हुआ हूँ।।
सुरेश साहनी कानपुर
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