क्या करें अब किस तरह हम गांव जाएँ।
गांव जाएँ या कि कुछ पैसे पठाये ।।
अबकी बुधिया ने कहा
दो साल बीते हैं विरह में किस तरह,
कैसे बताएं।।
गाड़ता है भेड़ियों जैसी नज़र
और जर्जर द्वार से
ढिबरी से निकली रोशनी कैसे छिपाएं।।
क्या बताएं किस तरह हम जी रहे हैं
उसको दें या ट्रेन का भाड़ा जुटाएँ।।
Suresh Sahani
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