यह देश हमारा है यह भूमि हमारी है।
गंगा भी हमारी है जमुना भी हमारी है।।
नफ़रत के अंधेरों की कोशिश न सफल होगी
इक नूर मुहब्बत का इस मुल्क पे तारी है।।
तक़सीम ज़ुबानों से कैसे ये सदा निकले
काबा भी हमारा है काशी भी हमारी है।।
इस फिरकापरस्ती से जल जाएगा हर इक घर
ये आग नहीं यह तो तलवार दुधारी है।।
Comments
Post a Comment