तुम्हारी बेरुख़ी से मर रहे थे।
ये कैसी बेवकूफी कर रहे थे।।
लगा था हिज़्र में हम मर मिटेंगे
समझ आया कि नाहक़ डर रहे थे।।
सुबह एक ताज़गी के साथ है हम
तभी शबनम से आंसू गिर रहे थे।।
किसी का साथ हमको मिल गया है
तुम्हारे साथ तन्हा फिर रहे थे।।
ये खालीपन न थी किस्मत तुम्हारी
तुम्हारे साथ हम जीभर रहे थे।।
मैं उनको भी दुआएं दे रहा हूँ
जो मेरे वास्ते खंज़र रहे थे।।
तुम अब भी फूल सी होगी उम्मीदन
तुम्हारे हाथ में पत्थर रहे थे।।
Suresh Sahani
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