अब भी हूक उठा करती है सीने में

अब भी याद तुम्हारी आया करती है।

जब तब तुम ख़्वाबों में भी आ जाती हो

और मेरी नींदें उड़ जाया करती हैं।।

तुमने प्यार किया हो ऐसी बात नहीं

तुमसे प्यार रहा हो यह भी याद नहीं।

वैसे तुम सहरा में चश्मे जैसी थी

मैं कैसा था बेशक़ तुमको याद नहीं।।

कह सकती हो मेरा मन बंजारा है

मैं कहता हूं अपना दिल आवारा है।

तुम क्या हो तुम खुद तय कर सकती हो लेकिन

मेरे कवि होने में हाथ तुम्हारा है।।


सुरेश साहनी

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है