जहाँ ताज़िर हुकूमत में रहेंगे।

यकीनन लोग गुरबत में रहेंगे।।


आवाज़ें मुसलसल देते रहना

नहीं तो लोग दहशत में रहेंगे।।


नई नस्लें अब हमसे पूछती हैं

ये कब तक ऐसी हालत में रहेंगे।।


ये सोने के कफ़स तुमको मुबारक 

हमे बेहतर है तुरबत में रहेंगे।।


हमें भी बुतपरस्ती आ न जाये

अगरचे तेरी सोहबत में रहेंगे।।


बगावत एक दिन होकर रहेगी

कहाँ तक  लोग ज़ुल्मत में रहेंगे।।


भुला बैठे हो वादा करके हमको

कहाँ तक हम मुहब्बत में रहेंगे।।

सुरेश

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