इश्क़ में ख़ुद को वारना तय था।
हुस्न के हाथ हारना तय था।।
हुस्न की फ़िक्र में जिया वरना
इश्क़ का खुद को मारना तय था।।
उसके बढ़ते कदम न् रुकते तो
साथ जीवन गुज़ारना तय था।।
क्यों गए भूल जितनी चादर हो
पाँव उतना पसारना तय था।।
क्या किसी गाम पर सदा आयी
जबकि उसका पुकारना तय था।।
लाख तूफान ज़िद पे आये हों
अपना किश्ती उतारना तय था।।
दिल की दुनिया उजाड़ दी उसने
जिसका मुझको संवारना तय था।।
सुरेश साहनी कानपुर
9451545132
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