चाहते हैं तुम्हें बहुत लेकिन
तुम इसे प्यार वार मत कहना।
देखते हैं तुम्हारी राह मगर
तुम इसे इंतेज़ार मत कहना।।
दिल ने जब तब तुम्हें सदा दी है
और ख्वाबों में भी बुलाया है
तेरी यादों में जाग कर तुझको
अपनी पलकों पे भी सुलाया है
इससे दिल को करार मिलता है
तुम मग़र बेक़रार मत कहना।।
तुम ख्यालों में पास आते हो
रह के ख़ामोश मुस्कुराते हो
बंद पलकों में कुछ ठहरते हो
आँख खुलते ही लौट जाते हो
ये जो छल है तुम्हारी आदत में
तुम इसे कारोबार मत कहना।।
सुरेश साहनी कानपुर
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