किस्मत मिली फकीरों जैसी।

फितरत मिली अमीरों जैसी।।

मेरा होना कौन समझता

हाथों खींची लकीरों जैसी।।


उनकी जुल्फें उलझी उलझी

अपनी बातें सुलझी सुलझी

हम आज़ाद ख्यालों वाले

रस्में थीं ज़ंजीरों जैसी।।


जो मेरी कुटिया में आया

बोल उठा इतना सरमाया

उसे क्या पता है यह मड़ई

मेरे लिए जगीरों जैसी।।


जितना उठना उतना गिरना

अपने ही घेरों में घिरना

सारे काम असीरों वाले

शोहरत थी तासीरों जैसी

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