हम अपने को समझ न पाये

औरों  को  कैसे   समझाते

जामवन्त सा साथी मिलता

हम हनुमान स्वतः बन जाते।।


तुमको पाना कठिन नहीं था

यदि हम अपने पर आ जाते

पर दुनिया से टकराने का

अलग मनोबल कैसे लाते।।


मिली जिंदगी चार दिनों की

कटी कमाते जीते-खाते

तुमको पाने की चाहत में 

दो दिन और कहाँ से लाते।।


तुम हमसे नाराज़ न होना

कर न सका तुमसे दो बातें

कुछ मेरी मजबूरी थी ,कुछ -

दुनियां की घातें प्रतिघातें।।

Suresh Sahani Kanpur

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