रिश्ते जब भी स्वारथ पूरित लगते हैं।
तब अपने ही लोग अपरिचित लगते हैं।।
दुनियादारी की बातें करने वाले
सच पूछो तो कितने सीमित लगते हैं।।
उनको अपने दुख से कोई हर्ज नहीं
वे औरों के सुख से पीड़ित लगते हैं।।
वे भी मिलते हैं तो एक तकल्लुफ़ से
तब कुछ हम भी खानापूरित लगते हैं।।
हम औरों की तंग खयाली क्या जानें
सच पूछो हम स्वयं संकुचित लगते हैं।।
सुरेश साहनी,कानपुर
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