इक ख़ुदा ही तलाश करना  था।

या पता ही तलाश करना था।।


मैं तो बेख़ुद था आप कर लेते

मयकदा ही तलाश करना था।।


हमसफ़र की किसे ज़रूरत थी

हमनवा ही तलाश करना था।। 


उसने झूठी तसल्लियाँ क्यों दी

जब नया ही तलाश करना था।।


मुझसे क्या उज़्र था अगर उसको

बेवफ़ा ही तलाश करना था।।


मुझको मंज़िल तलाश करनी थी

उसको राही तलाश करना था।।


साहनी सुरेश कानपुर

9451545132

Comments

Popular posts from this blog

भोजपुरी लोकगीत --गायक-मुहम्मद खलील

श्री योगेश छिब्बर की कविता -अम्मा

र: गोपालप्रसाद व्यास » साली क्या है रसगुल्ला है