चाँद तेरा गुरुर जायज है

किन्तु हम इस कदर बुरे भी नहीं

रात झूमी मेरी रवानी में

और हम इतने बेसुरे भी नहीं

तुम अगर आसमां की रौनक हो 

लूट लेते हैं महफिलें हम भी

तुम मुसाफिर हो ये अना है तो

छोड़ आये हैं मंजिलें हम भी

हम भी अपनी अना पे क़ायम हैं

तुमको जब देर से ही आना है

हमको भी अपने चाँद के संग संग

दिन यही सौ बरस मनाना है....

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