रोशनी को दिये जलाये हैं।
पर अंधेरे अभी भी छाए हैं।।
और बौना हुये हैं हम घर में
कुछ बड़े लोग जब भी आये हैं।।
अब किनारे न डूब जाएं हम
बच के गिरदाब से तो आये हैं।।
क्या किनारे मुझे डुबायेंगे
जो बचाकर भँवर से लाये हैं।।
दोस्तों को न आजमा लें हम
कितने दुश्मन तो आज़माये हैं।।
आप भी हक़ से ज़ख़्म दे दीजे
क्या हुआ आप जो पराए हैं।।
आप की दुश्मनी भी नेमत हैं
यूँ तो रिश्ते बहुत निभाये हैं।।
सुरेश साहनी, कानपुर
9451545132
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