इक मुलाक़ात तो कर ली होती।

कम से कम बात तो कर ली होती।।


तुमको शिकवे भी बहुत थे मुझसे

वो शिक़ायात तो कर ली होती।।


यार तुम पर था भरोसा कितना

एक दो घात तो कर ली होती।।

 

खल्क ख़ुद अर्ज़-ओ-गुज़ारिश करता

इतनी औकात तो कर ली होती।।


यार अर्थी ही समझ कर चलते

मेरी बारात तो कर ली होती।। 


दुश्मनी मुझसे निभाने वाले

कुछ मसावात तो कर ली होती।।


सिर्फ इक रोज मुझे दे देते

वस्ल इक रात तो कर ली होती।।


शिक़ायात/शिकायतें

ख़ल्क़/ संसार

मसावात/बराबरी

वस्ल/ मिलन


सुरेश साहनी, कानपुर

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