अब गरीबों की ख़ुशी के वास्ते कुछ कीजिये।

हो सके त्यौहार पर पाबंदियां रख दीजिये।।

ये पटाखे फुलझड़ी लैया बताशे हो न हों

राजपथ पर पेट भरकर  रौशनी कर दीजिये।।

क्या फरक पड़ता है उनके घर में राशन हो न हो

भाषणों में वायदों की चाशनी भर दीजिये।।

जो करे तारीफ़ उसको रत्न-भारत दीजिये

जो करे फरियाद उसको जेल में कर दीजिये।।

एक दिन आएंगे अच्छे दिन भरोसा कीजिये

सिर्फ हम जैसों की झोली वोट से भर दीजिये।।


व्यंग्य

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