क्या लिखूँ प्यार मुहब्बत बेहतर।

या कि दुनिया से अदावत बेहतर।।


घर पड़ोसी का जलाया किसने 

क्या गरज अपनी शराफ़त बेहतर।।


बोझ उसका है उठाने दो उसे

कुछ तो है अपनी नज़ाकत बेहतर।।


झूठ ने खूब तरक्की की है

किसने बोला है सदाक़त बेहतर।।


गर्म साँसों की तपिश चुभती है

ताब की हद में है चाहत बेहतर।।


आज का दौर यही है शायद

प्यार से है कहीं नफ़रत बेहतर।।


एक मुखबिर को मिले देश रतन

कैसे कह दें है शहादत बेहतर।।


सुरेश साहनी, कानपुर

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