कुछ कह दिया कुछ सुन लिया।
इक जाल गोया बुन लिया।।
मन ना मिला कतरा गए
मन मिल गए तो चुन लिया।।
निर्णय लिए खुश हो लिए
बस ना चला सिर धुन लिया।।
सावन मिला घनश्याम से
मन रंग कर फागुन लिया।।
किसको कहें अपना गुरु
जब सब ज़हाँ से गुन लिया ।।
तुलसी से गुण में रम गए
कबिरा मिले निर्गुन लिया।।
सुरेश साहनी
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