सुरेश साहनी,कानपुर
गांव सरीखी सर्दी बदरी घाम मिले तो कहना।
अपने घर को छोड़ कहीं आराम मिले तो कहना।।
भली लगे है मुझे गांव सुखी रोटी चटनी
हजम नहीं होती हैं मुझको बातें चुपड़ी चिकनी
सतुवा भूजा बाटी चोखा नाम मिले तो कहना।।
गांव सरीखी सर्दी ......
मुझे गाँव भाता है चाहे बैठा रहूँ निठल्ला
तुम कह दो तो शहर चलूँगा मान तुम्हारी लल्ला
धूप सेकने जैसा कोई काम मिले तो कहना।।
कहीं गांव की प्रीत सरीखी प्रीत मिले तो कहना
उनका नाम नहीं लेने की रीत मिले तो कहना
कहीं द्वारका में राधा और श्याम मिले तो कहना।।
प्रेम सुधा गांवों से अच्छी सस्ती कहाँ मिलेगी
शहरों में मन्सूर सरीखी मस्ती कहाँ मिलेगी
कहीं रुबाई को कोई ख़य्याम मिले तो कहना।।
औरों के दुख जब अपने दुख हमें नज़र आएंगे
पीड़ाओं की हंसी उड़ाने वाले छिप जाएंगे
पीड़ाओं को यही नया आयाम मिले तो कहना।।
कदम कदम पर असुर दशानन गली गली फिरते हैं
निर्बल जन का हनन नित्य पट हरण किया करते हैं
इनका उद्धारक फिर कोई राम मिले तो कहना।।
सुरेशसाहनी,कानपुर
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