रुग्णता को मेट दूं उपचार दे दूँ।
ज़िंदगानी को नया आधार दे दूं।।
खिल उठे फिर फिर गुलाबों सी जवानी
भाव के वैधव्य को श्रृंगार दे दूं।।
मानिनी का मान अक्षुण हो अमर हो
रीझ कर रूठो तुम्हें मनुहार दे दूं।।
तुम कहो तो प्यार की हर रीति मानूँ
मेरी निजता का सकल संसार दे दूं।।
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